तेलंगाना सरकार ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है — अब दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्ति भी स्थानीय निकाय चुनावों (Local Body Elections) में उम्मीदवार बन सकेंगे।
राज्य कैबिनेट ने यह निर्णय लेते हुए वर्षों पुराने उस प्रावधान को समाप्त कर दिया है, जिसके तहत दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को ग्राम पंचायत, नगर पंचायत, नगर निगम और जिला परिषद के चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किया जाता था।
📜 क्या था पुराना नियम?
तेलंगाना (और पहले आंध्र प्रदेश) में 1994 से लागू एक नियम था कि
“यदि किसी व्यक्ति की दो से अधिक संतानें हैं, तो वह किसी भी स्थानीय निकाय के चुनाव में उम्मीदवार नहीं बन सकता।”
यह नियम “जनसंख्या नियंत्रण नीति” के तहत बनाया गया था ताकि परिवार नियोजन को प्रोत्साहित किया जा सके।
लेकिन वर्षों में यह प्रावधान सामाजिक और राजनीतिक रूप से विवादास्पद बन गया, क्योंकि इससे ग्रामीण इलाकों में कई योग्य उम्मीदवार चुनाव प्रक्रिया से बाहर हो जाते थे।
🏛️ सरकार का नया फैसला
तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में यह निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया।
- अब दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्ति भी ग्राम पंचायत, मंडल परिषद, जिला परिषद, नगर निगम और नगर पंचायत के चुनाव लड़ सकेंगे।
- सरकार ने इस निर्णय को “सामाजिक न्याय और समान अवसर” की दिशा में एक कदम बताया है।
- साथ ही, संबंधित अधिनियमों — तेलंगाना पंचायत राज एक्ट (2018) और नगर पालिका एक्ट — में संशोधन किया जाएगा।
सरकार ने कहा कि यह फैसला समाज के उन तबकों के लिए राहत लाएगा जो इस नियम के कारण स्थानीय लोकतंत्र में भाग नहीं ले पा रहे थे।
🧩 क्यों हटाया गया यह नियम?
तेलंगाना सरकार ने इस नियम को हटाने के पीछे कई व्यावहारिक और सामाजिक कारण बताए —
- जनसंख्या वृद्धि दर पहले ही नियंत्रित है
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (NFHS-5) के अनुसार, तेलंगाना में जन्म दर घटकर 2.0 से नीचे आ चुकी है, जो स्थिर जनसंख्या का संकेत है।
- गरीब और ग्रामीण परिवारों पर अनुचित असर
- ग्रामीण इलाकों में सामाजिक कारणों और शिक्षा की कमी के चलते बड़े परिवार आम बात हैं। इस कारण कई योग्य लोगों को चुनाव से बाहर होना पड़ता था।
- लोकतांत्रिक भागीदारी बढ़ाने की दिशा में कदम
- सरकार का कहना है कि यह निर्णय स्थानीय शासन में समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करेगा और “हर व्यक्ति को चुनाव लड़ने का अधिकार” देगा।
- नया सामाजिक परिदृश्य
- आधुनिक समाज में शिक्षा और जनजागरूकता के कारण परिवार नियोजन स्वैच्छिक रूप से अपनाया जा रहा है। इसलिए जबरन प्रतिबंध की अब ज़रूरत नहीं रही।
⚖️ कानूनी प्रक्रिया
सरकार इस निर्णय को औपचारिक रूप देने के लिए अध्यादेश (Ordinance) लाने की तैयारी में है, यदि विधानसभा का सत्र शीघ्र न बुलाया गया।
इसके बाद संबंधित कानूनों में संशोधन कर आधिकारिक अधिसूचना जारी की जाएगी।
🗣️ राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ
- सत्ताधारी कांग्रेस सरकार ने इसे “समानता का निर्णय” बताया और कहा कि स्थानीय निकाय लोकतंत्र अब और मज़बूत होगा।
- विपक्षी दलों ने इस कदम का मिश्रित प्रतिक्रिया दी — कुछ नेताओं ने इसे “लोकप्रिय लेकिन जनसंख्या नीति को कमजोर करने वाला” बताया।
- सामाजिक संगठनों ने कहा कि यह फैसला “असली लोकतंत्र” की दिशा में एक बड़ा कदम है क्योंकि यह किसी की पारिवारिक स्थिति के आधार पर अधिकार नहीं छीनता।
🌍 सामाजिक प्रभाव
| प्रभाव | विवरण |
|---|---|
| राजनीतिक भागीदारी में वृद्धि | अब अधिक उम्मीदवार ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों से चुनाव लड़ सकेंगे। |
| महिला प्रतिनिधित्व पर असर | महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों पर भी अधिक उम्मीदवार सामने आएँगे। |
| जनसंख्या नियंत्रण नीति में बदलाव | राज्य अब “प्रतिबंध आधारित नीति” की बजाय “जागरूकता आधारित नीति” अपनाने की दिशा में बढ़ेगा। |
📊 आंकड़ों से समझिए
- तेलंगाना में TFR (Total Fertility Rate) 1.8 है — यानी प्रत्येक महिला औसतन दो से कम बच्चों को जन्म देती है।
- विशेषज्ञों के अनुसार, जनसंख्या स्थिरता की सीमा 2.1 मानी जाती है, इसलिए राज्य पहले ही संतुलन पर पहुंच चुका है।
इसलिए “दो बच्चों की शर्त” अब वास्तविक रूप से अप्रासंगिक हो चुकी थी।

🕊️ निष्कर्ष
तेलंगाना सरकार का यह निर्णय राज्य के स्थानीय लोकतंत्र को अधिक समावेशी और आधुनिक बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।
जहां पहले “दो बच्चे की शर्त” समाज के एक हिस्से को राजनीतिक प्रक्रिया से दूर कर रही थी, वहीं अब हर व्यक्ति को बिना भेदभाव के चुनाव में भाग लेने का अवसर मिलेगा।