🌺 धार्मिक परंपरा और बंदी की प्रक्रिया
केदारनाथ मंदिर में कपाट बंद करने की प्रक्रिया बेहद धार्मिक और पारंपरिक तरीके से होती है। सबसे पहले भगवान शिव की डोली की विशेष पूजा की जाती है, फिर गर्भगृह में “समाधि पूजा” होती है। उसके बाद मंदिर के कपाट को फूलों से सजाकर पूजा-विधि के साथ बंद कर दिया जाता है। कपाट बंदी के बाद भगवान केदारनाथ की चल विग्रह डोली ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर के लिए रवाना होती है, जहां अगले छह महीनों तक बाबा केदार की पूजा-अर्चना की जाएगी।
🌼 सीएम धामी की उपस्थिति
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी हर साल की तरह इस बार भी कपाट बंदी के अवसर पर विशेष पूजा करेंगे। उन्होंने कहा कि केदारनाथ यात्रा के सफल संचालन के लिए सभी श्रद्धालुओं, पुजारियों और प्रशासनिक अधिकारियों का योगदान सराहनीय रहा है।
🚩 इस वर्ष की यात्रा विशेष रही
इस साल चारधाम यात्रा रिकॉर्ड तोड़ रही। लाखों श्रद्धालु बाबा केदार के दर्शन के लिए पहुंचे। कठिन मौसम और भूस्खलन जैसी चुनौतियों के बावजूद श्रद्धालुओं की आस्था में कोई कमी नहीं आई। केदारनाथ धाम को इस मौके पर फूलों से सजाया गया है, जिससे पूरा परिसर दिव्य और मनमोहक दिखाई दे रहा है।
🙏 श्रद्धालुओं के लिए अपील
- कपाट बंदी के समय भीड़ की संभावना को देखते हुए प्रशासन ने सभी व्यवस्थाएं पूरी कर ली हैं।
- श्रद्धालुओं से अनुरोध है कि वे अनुशासित रहें और प्रशासन के निर्देशों का पालन करें।
- जो लोग अब दर्शन नहीं कर पाएंगे, वे ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में शीतकालीन पूजा में भाग ले सकते हैं।
🕉️ धार्मिक महत्व
केदारनाथ धाम द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है और भगवान शिव के पंच केदार रूपों में सबसे प्रमुख स्थान रखता है। यहाँ कपाट बंद करना सिर्फ एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि प्रकृति और अध्यात्म का संगम है — जो यह दर्शाता है कि बर्फ़ीले मौसम में भी आस्था की लौ कभी नहीं बुझती।
