⚖️ SC ने सभी राज्यों से डिजिटल अरेस्ट मामलों का डेटा मांगा, 3 नवंबर को अगली सुनवाई
देशभर में बढ़ते ‘डिजिटल अरेस्ट’ मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से इस तरह के मामलों का पूरा डेटा मांगा है। कोर्ट ने यह निर्देश 3 नवंबर को होने वाली अगली सुनवाई से पहले दिया है।
📜 क्या है मामला?
हाल के महीनों में डिजिटल अरेस्ट (Digital Arrest) नाम से एक नई साइबर ठगी के मामले तेजी से सामने आए हैं। इन मामलों में ठग खुद को पुलिस, सीबीआई, एनआईए या किसी न्यायिक अधिकारी के रूप में पेश करते हैं।
वे नागरिकों को वीडियो कॉल या फोन कॉल पर यह कहकर डराते हैं कि उनके खिलाफ कोई मामला दर्ज है, और उनसे जुर्माना या राशि जमा करवाने के लिए कहा जाता है।
लोगों को वर्चुअल “डिजिटल अरेस्ट” दिखाकर उन्हें कमरे में बंद रहने और लगातार निगरानी में रहने का नाटक किया जाता है — ताकि वे किसी से संपर्क न कर सकें। इस तरह अपराधी उनके खाते से भारी रकम उड़ा लेते हैं।
⚖️ सुप्रीम कोर्ट की सख्ती
सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्वयं संज्ञान (Suo Motu) लेते हुए गृह मंत्रालय, सीबीआई, और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया है।
अदालत ने कहा कि—
“यह बेहद गंभीर मामला है। लोगों को झूठे आरोपों में डराकर ठगी की जा रही है। यह न केवल नागरिकों की स्वतंत्रता पर हमला है बल्कि न्यायिक व्यवस्था पर भी खतरा है।”
कोर्ट ने राज्यों से कहा है कि वे अब तक दर्ज हुए सभी डिजिटल अरेस्ट मामलों का विस्तृत विवरण (Data Report) कोर्ट में पेश करें, जिसमें शामिल हो:
- अब तक दर्ज एफआईआर की संख्या
- जांच की वर्तमान स्थिति
- गिरफ्तार किए गए आरोपियों की जानकारी
- और अब तक बरामद की गई राशि या संपत्ति का ब्यौरा
🕵️♂️ CBI को दी जा सकती है जांच
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि अगर यह अपराध राज्यों की सीमाओं से परे फैले हुए पाए जाते हैं, तो संभव है कि इन सभी मामलों की जांच CBI को सौंप दी जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिए हैं कि यह समस्या राष्ट्रीय स्तर पर फैली साइबर ठगी नेटवर्क का हिस्सा हो सकती है।
🗓️ अगली सुनवाई 3 नवंबर को
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगली सुनवाई 3 नवंबर 2025 को होगी। तब तक सभी राज्य सरकारों और केंद्र को विस्तृत रिपोर्ट कोर्ट में जमा करनी होगी।
उस रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट आगे के आदेश जारी करेगा — जिसमें केंद्रीय जांच, निगरानी तंत्र और जागरूकता अभियान से जुड़ी दिशा-निर्देश शामिल हो सकते हैं।
📊 क्या कहते हैं हालिया आंकड़े
- महाराष्ट्र पुलिस के अनुसार, सिर्फ 8 महीनों में राज्य में 218 डिजिटल अरेस्ट केस दर्ज किए गए, जिनमें नागरिकों से करीब ₹112 करोड़ की ठगी हुई।
- मुंबई में 58 करोड़ रुपये की ठगी के एक मामले में 7 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है।
- ओडिशा और पश्चिम बंगाल में भी ऐसे कई अंतरराज्यीय गैंग पकड़े गए हैं।
इन मामलों से यह स्पष्ट है कि “डिजिटल अरेस्ट” साइबर अपराध अब एक संगठित नेटवर्क बन चुका है, जो कई राज्यों में सक्रिय है।
🚨 क्या है डिजिटल अरेस्ट ठगी का तरीका
- ठग खुद को सरकारी अधिकारी या पुलिस बताकर वीडियो कॉल करते हैं।
- पीड़ित को डराया जाता है कि उसके खिलाफ गंभीर केस दर्ज है।
- “जांच” के नाम पर पीड़ित से बैंक अकाउंट डिटेल्स और KYC जानकारी मांगी जाती है।
- कुछ मामलों में पीड़ित को वीडियो कॉल पर “हाउस अरेस्ट” में रखा जाता है।
- अंत में बैंक खातों से रकम ट्रांसफर कर ली जाती है।
🧠 सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी
कोर्ट ने कहा कि यह मामला सिर्फ धोखाधड़ी नहीं बल्कि मानवाधिकार उल्लंघन का भी है।
“किसी नागरिक को डराकर पैसे ठगना न सिर्फ साइबर अपराध है, बल्कि संविधान प्रदत्त स्वतंत्रता का भी अपमान है।”
✅ निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट की यह पहल देश में साइबर सुरक्षा की दिशा में बड़ा कदम साबित हो सकती है।
राज्यों से डेटा एकत्र कर, कोर्ट एक राष्ट्रीय नीति बना सकता है ताकि भविष्य में कोई नागरिक “डिजिटल अरेस्ट” जैसे झांसे में न आए।
अगली सुनवाई पर पूरे देश की निगाहें टिकी होंगी, क्योंकि इस मामले का फैसला आगे आने वाले साइबर क्राइम कानूनों और सुरक्षा ढांचे को नई दिशा दे सकता है।