भारत का लोकतंत्र अपनी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव प्रणाली पर टिका है।
चुनाव आयोग (Election Commission of India – ECI) वह संस्था है जो यह सुनिश्चित करती है कि देश में हर चुनाव पारदर्शी और निष्पक्ष ढंग से संपन्न हो।
लेकिन पिछले कुछ महीनों में इस संस्था की नियुक्ति प्रक्रिया पर गंभीर विवाद खड़ा हो गया है।
2023 में केंद्र सरकार ने एक नया कानून पारित किया — Chief Election Commissioner and Other Election Commissioners (Appointment, Conditions of Service and Term of Office) Act, 2023, जिसमें चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के नियम बदले गए।
इस कानून ने सबसे बड़ा परिवर्तन यह किया कि Chief Justice of India (CJI) को चयन समिति से हटा दिया गया, जबकि पहले सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि चयन प्रक्रिया में CJI की भूमिका अनिवार्य होनी चाहिए।
इस फैसले को कई सामाजिक संगठनों, वकीलों और विपक्षी दलों ने “लोकतंत्र के लिए खतरा” बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
अब सुप्रीम कोर्ट ने घोषणा की है कि इस महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई नवंबर 2025 में होगी।
⚖️ संविधान और चुनाव आयोग की भूमिका
भारत के संविधान का अनुच्छेद 324 चुनाव आयोग की स्थापना का आधार है।
यह अनुच्छेद राष्ट्रपति को अधिकार देता है कि वह मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करें।
लेकिन साथ ही यह भी कहता है कि संसद एक ऐसा कानून बना सकती है जो इस नियुक्ति की प्रक्रिया तय करे।
वर्षों से यह प्रक्रिया अस्पष्ट रही — राष्ट्रपति सरकार की सलाह पर नियुक्तियाँ करते रहे।
2023 से पहले तक इस संबंध में कोई स्थायी कानून नहीं था जो नियुक्ति की सटीक प्रक्रिया बताता हो।
फिर आया एक ऐतिहासिक फैसला…
⚖️ सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला — Anoop Baranwal vs Union of India (2023)
मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय दिया —
कि जब तक संसद इस पर कोई कानून नहीं बनाती, तब तक चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक तीन-सदस्यीय चयन समिति द्वारा की जाएगी, जिसमें होंगे:
- प्रधानमंत्री
- लोकसभा में नेता विपक्ष
- भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI)
इस फैसले के पीछे अदालत की मंशा साफ़ थी —
“चुनाव आयोग की स्वतंत्रता तभी सुरक्षित रह सकती है जब उसकी नियुक्ति प्रक्रिया निष्पक्ष और सरकार से अलग रहे।”
इस निर्णय के बाद सभी को उम्मीद थी कि संसद एक ऐसा कानून लाएगी जो इस भावना को कायम रखेगा।
लेकिन जब 2023 का कानून पेश किया गया, तो उसमें CJI को हटाकर उनकी जगह केंद्रीय मंत्री को शामिल कर दिया गया।
यहीं से विवाद शुरू हुआ।
📜 2023 का नया कानून — क्या बदला?
केंद्र सरकार ने दिसंबर 2023 में संसद में एक नया कानून पारित किया —
Chief Election Commissioner and Other Election Commissioners (Appointment, Conditions of Service and Term of Office) Act, 2023
इस कानून की प्रमुख बातें
- Selection Committee का गठन:
- प्रधानमंत्री (Chairperson)
- लोकसभा में नेता विपक्ष
- एक केंद्रीय मंत्री, जिसे प्रधानमंत्री नामित करेगा
- Search Committee का गठन:
- कैबिनेट सचिव (Chairman)
- और दो वरिष्ठ अधिकारी, जो संभावित उम्मीदवारों की सूची तैयार करेंगे।
- CJI को बाहर किया गया:
- पहले सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा था कि CJI चयन प्रक्रिया में रहेंगे, लेकिन नए कानून में न्यायपालिका को पूरी तरह बाहर कर दिया गया।
- पदावधि (Tenure):
- चुनाव आयुक्त अधिकतम 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक पद पर रह सकते हैं।
- वेतन और सुविधाएँ:
- अब चुनाव आयुक्तों का वेतन कैबिनेट सचिव के समान होगा (पहले यह सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के बराबर था)।
🔍 विवाद की जड़
इस कानून को लेकर मुख्य विवाद तीन बिंदुओं पर केंद्रित है:
1. न्यायपालिका की भूमिका समाप्त
CJI को चयन समिति से बाहर करने से, न्यायपालिका की संवैधानिक निगरानी समाप्त हो गई।
अब दो सदस्य (PM और मंत्री) सीधे सरकार से संबंधित हैं, जबकि विपक्षी नेता अल्पमत में रहेंगे।
इससे निर्णय लगभग सरकार के पक्ष में ही जाएगा।
2. स्वतंत्रता पर प्रश्न
चुनाव आयोग को “स्वतंत्र संवैधानिक संस्था” कहा जाता है।
लेकिन यदि उसकी नियुक्ति प्रक्रिया राजनीतिक प्रभाव में होगी, तो उसकी निष्पक्षता संदिग्ध मानी जाएगी।
3. बेसिक स्ट्रक्चर का उल्लंघन
संविधान की मूल भावना (Basic Structure Doctrine) कहती है कि
लोकतंत्र, स्वतंत्र न्यायपालिका और निष्पक्ष चुनाव भारत के संविधान की आत्मा हैं।
इस कानून से इन तीनों में से दो पर असर पड़ता है।
🧑⚖️ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती — कौन-कौन याचिकाकर्ता हैं?
कई याचिकाएँ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुई हैं।
मुख्य याचिकाकर्ता हैं:
- Association for Democratic Reforms (ADR)
- जय ठाकुर (Jaya Thakur) – कांग्रेस से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता
- धर्मेंद्र कुशवाहा
- संजय मेश्राम
- Advocate Shyam Divan (सीनियर वकील, याचिकाकर्ता पक्ष)
इन सभी ने कहा कि यह कानून असंवैधानिक है और
सुप्रीम कोर्ट के 2023 के Anoop Baranwal निर्णय की भावना के विपरीत है।
📅 केस की समयरेखा (Timeline)
| तारीख | घटनाक्रम |
|---|---|
| मार्च 2023 | सुप्रीम कोर्ट ने Anoop Baranwal मामले में फैसला सुनाया, CJI को चयन समिति में शामिल किया |
| दिसंबर 2023 | संसद ने नया कानून पारित किया — CJI को बाहर कर दिया |
| जनवरी 2024 | ADR, जय ठाकुर सहित कई याचिकाएँ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल |
| फरवरी 2025 | कोर्ट ने याचिकाओं पर नोटिस जारी किया |
| मार्च 2025 | कोर्ट ने स्टे देने से इनकार किया — कहा कि कानून पर विस्तृत सुनवाई बाद में होगी |
| नवंबर 2025 | सुप्रीम कोर्ट में अंतिम सुनवाई निर्धारित |
⚔️ दोनों पक्षों की दलीलें
🔹 याचिकाकर्ताओं की दलीलें
- यह कानून सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करता है।
- इससे चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता खत्म होगी।
- सरकार अपने मनपसंद व्यक्तियों को आयोग में नियुक्त कर सकती है।
- यह संविधान की बेसिक स्ट्रक्चर सिद्धांत का उल्लंघन है।
- न्यायपालिका को बाहर करना Checks and Balances प्रणाली को कमजोर करता है।
🔸 केंद्र सरकार की दलीलें
- संसद को विधायी शक्ति है, वह कानून बना सकती है।
- सुप्रीम कोर्ट का आदेश “अंतरिम व्यवस्था” था, जो स्थायी नहीं हो सकता।
- यह कानून लोकतांत्रिक और पारदर्शी प्रक्रिया प्रदान करता है।
- न्यायपालिका की भूमिका नियुक्ति में नहीं, बल्कि न्यायिक समीक्षा में होनी चाहिए।
- इससे कार्यपालिका को जिम्मेदारी और जवाबदेही दोनों मिलती है।
📚 विशेषज्ञों की राय
कई संवैधानिक विशेषज्ञों ने इस विषय पर अपनी राय दी है:
🗣️ प्रो. फौज़िया नसीम (संविधान विशेषज्ञ)
“CJI को हटाने से सरकार को नियुक्ति प्रक्रिया पर पूरा नियंत्रण मिल गया।
यह संविधान की आत्मा के खिलाफ है।”
🗣️ प्रशांत भूषण (वरिष्ठ वकील)
“यह कानून सरकार को चुनाव आयोग का मालिक बना देता है।
जिस संस्था को सरकार से स्वतंत्र होना चाहिए, वह अब सरकार की अधीन बन जाएगी।”
🗣️ पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी
“अगर सरकार नियुक्त करेगी और विपक्ष सिर्फ गवाह बनेगा,
तो निष्पक्षता पर सवाल उठेंगे। लोकतंत्र कमजोर होगा।”
🏛️ सुप्रीम कोर्ट का रुख
सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2025 में कहा था कि वह इस कानून पर अंतरिम रोक (Stay) नहीं लगाएगा,
क्योंकि इससे चुनाव आयोग की नियुक्तियाँ बाधित हो जाएँगी।
लेकिन कोर्ट ने कहा कि यह मामला संविधान की मूल भावना से जुड़ा है,
इसलिए इसे संविधान पीठ (Constitution Bench) को सौंपा जाएगा।
अब नवंबर 2025 में पाँच-न्यायाधीशों की पीठ इस पर अंतिम सुनवाई करेगी।
मुख्य सवाल होगा —
“क्या संसद को यह अधिकार है कि वह न्यायपालिका की भूमिका पूरी तरह समाप्त कर दे,
जब मामला संविधान की मूल आत्मा से जुड़ा हो?”
🔮 संभावित परिणाम
1. यदि कानून असंवैधानिक घोषित हुआ
- 2023 का कानून रद्द होगा।
- CJI को चयन समिति में पुनः शामिल किया जाएगा।
- पहले की नियुक्तियाँ “रीव्यू” के अधीन आ सकती हैं।
- नया कानून लाना पड़ेगा।
2. यदि कानून वैध माना गया
- सरकार को चयन प्रक्रिया पर अधिक नियंत्रण मिलेगा।
- विपक्ष की भूमिका नाममात्र की रह जाएगी।
- चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर राजनीतिक बहस तेज होगी।
🧭 लोकतंत्र पर प्रभाव
- चुनाव आयोग की स्वायत्तता सीधे प्रभावित हो सकती है।
- न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच शक्ति संतुलन बदल सकता है।
- लोकतंत्र में जनविश्वास घट सकता है यदि आयोग को “सरकारी संस्था” माना जाने लगे।
- यह फैसला आने वाले दशकों तक संवैधानिक न्यायशास्त्र में मील का पत्थर बन सकता है।

📖 निष्कर्ष
भारत का लोकतंत्र “स्वतंत्र संस्थाओं” की रीढ़ पर खड़ा है।
चुनाव आयोग उनमें से सबसे महत्वपूर्ण है।
2023 में लाया गया कानून, जिसने CJI को चयन प्रक्रिया से बाहर किया,
सिर्फ एक तकनीकी बदलाव नहीं — बल्कि यह संविधान की आत्मा को परखने वाला कदम है।
अब नवंबर में सुप्रीम कोर्ट का फैसला यह तय करेगा कि
क्या हमारी संवैधानिक संस्थाएँ सरकार के प्रभाव से परे रहेंगी
या लोकतंत्र के ढाँचे में “शक्ति संतुलन” स्थायी रूप से बदल जाएगा।